ये सच है कि इंसानी गतिविधियां जंगलों और जानवरों के आवास को खतरे में नहीं डाल रही हैं, बल्कि पूरी तरह से खत्म ही करने का काम कर रही हैं. अफ्रीका जैसे महाद्वीप जो आज भी वन्य जीवन में काफी समृद्ध माने जाते हैं विलुप्त हो रही या विलुप्त होने की कगार पर पहुंचने वाले जानवरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. लेकिन इन सब कड़वी सच्चाइयों के अलावा भी जीवाश्मों के शोध से अफ्रीका के जानवरों के इतिहास पर हुए अध्ययन में कई तरह के चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. इनमें से एक बड़ा खुलासा यह है कि अफ्रीका में विशाल स्तनपायी जानवर तेजी से कम हो रहे हैं.
स्तनपायी जानवरों का इतिहास
बर्लिन के म्यूजियम फॉर नाटुरकुंडे और यूनिवर्सिटी की फैजल बीबी और अल्काला की जुआन एल कैनटालापिएड्रा के जीवाश्मों पर शोध के डजरिए अफ्रीका के विशाल स्तनपायी जीवों की इतिहास पर नजर डाली. उन्हें पिछले हजारों जीवाश्मों के आंकड़ों के जरिए इन स्तनपायी जानवरों के एक करोड़ सालों की जनसंख्या और आकार के आंकड़ों का पुनर्निर्माण किया.
आकार और जनसंख्या का संबंध
इस चुनौतीपूर्ण कार्य को करने के बाद शोध में पाया गया कि जानवर के आकार और जनसंख्या के बीच एक बहुत ही महत्वपूर्ण संबंध होता है और संबंध चाहे जीवाश्म हो या आज के समुदाय हमेशा एक सा ही कायम रहता है. इस खोज ने यह सुझाया है कि चाहे एक करोड़ साल पहले की बात हो या फिर आज के युग के जानवर, एक ही मूल पारिस्थितिकी नियम हमेशा लागू होते हैं.
45 किलो से ज्यादा भारी जानवर
अध्ययन में पाया गया कि जो जानवर 45 किलो ज्यादा भारी होते हैं उनमें घटती जनसंख्या का आकार में इजाफे का संबंध पाया गया. इसका मैटाबॉलिक स्केलिंग से संबंध भी पाया गया जिसमें एक विशाल प्रजाति का जनसंख्या घनत्व कम होता है, वहीं उन्हीं की तरह की छोटी प्रजातियों में ऐसा नहीं होता है.

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